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ज्ञानार्जन: हंस और कौवा - Printable Version

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ज्ञानार्जन: हंस और कौवा - admin - 11-09-2020

ज्ञानार्जन

      !! हंस और कौवा !!

एक समय एक गांव में दो ब्राह्मण पुत्र रहते थे । एक गरीब था, दूसरा अमीर । दोनों पड़ोसी थे। गरीब ब्राम्हण की पत्नी उसे रोज ताने देती, झगड़ती ।

एक दिन ग्यारस के दिन गरीब ब्राह्मण पुत्र रोज-रोज की कलह से तंग आकर जंगल की ओर चल पड़ता है,
"ये सोचकर कि जंगल में शेर या कोई मांसाहारी जीव उसे मारकर खा जाएगा, उस जीव का पेट भर जाएगा और मरने से वह रोज की झिक-झिक से भी मुक्त हो जाएगा ।"

जंगल में पहुंचते ही उसे एक गुफा दिखाई देती है । वह गुफा की तरफ जाता है । गुफा में एक शेर सोया होता है, और शेर की नींद में खलल न पड़े, इसके लिए हंस का पहरा होता है ।

हंस जब दूर से ब्राह्मण पुत्र को आता देखता है, तो चिंता में पड़कर सोचता है,
"ये ब्राह्मण आएगा, शेर की नींद में व्यवधान पैदा होगा, वह क्रोध में उठेगा और इसे मारकर खा जाएगा । ग्यारस के दिन मुझे पाप लगेगा । इसे कैसे बचाया जाए...??"

हंस को एक उपाय सूझता है और वह शेर के भाग्य की तारीफ करते हुए कहता है,
"ओ जंगल के राजा, उठो, जागो, आज आपके भाग्य खुल गए हैं । देखो ग्यारस के दिन खुद विप्रदेव आपके घर पधारे हैं, जल्दी उठें और इन्हें दक्षिणा देकर विदा करें, आपका मोक्ष हो जाएगा, आपको पशु योनि से मुक्ति मिल जाएगी । ये दिन दुबारा आपकी जिंदगी में फिर कभी नहीं आएगा..!"

शेर दहाड़ मारकर उठता है । हंस की बात उसे सही लगती है और पूर्व में शिकार किए गए मनुष्यों के गहने वह ब्राह्मण के पैरों में रखकर अपना शीश नवाता है, जीभ से उसके पैर चाटकर उसका अभिवादन करता है ।

हंस ब्राह्मण को इशारा करता है, "विप्रदेव ये सब गहने, सोना-चांदी उठाओ और जितनी जल्दी हो सके वापस अपने घर चले जाओ । ये सिंह है, पता नहीं कब इसका मन बदल जाए..!"

ब्राह्मण हंस के इशारे को समझ जाता है और तुरंत घर लौट जाता है । उधर पड़ोसी अमीर ब्राह्मण की पत्नी को जब यह सब पता चलता है, तो वह भी अपने पति को जबरदस्ती अगली ग्यारस के दिन जंगल में उसी शेर की गुफा की ओर भेजती है ।

अब शेर का पहरेदार बदल गया है...नया पहरेदार होता है... "कौवा"

कौवे की जैसी प्रवृति होती है, वह सोचता है, "बहुत बढ़िया है, ब्राह्मण आया है, शेर को जगा दूं । शेर की नींद में खलल पड़ेगी, वह क्रोधित होगा, ब्राह्मण को मारेगा, तो कुछ मेरे भी हाथ लगेगा, मेरा भी पेट भर जाएगा ।"

यह सोचकर वह कांव... कांव... कांव... चिल्लाने लगता है ।
शेर अत्यंत क्रोधित होकर उठता है । दूसरे ब्राह्मण पर उसकी नजर पड़ती है । परंतु उसे हंस की बात याद आ जाती है । वह समझ जाता है, कौवा क्यों कांव... कांव...कर रहा है ।

वह अपने, हंस के कहने पर पहले किए गए धर्म-कर्म को खत्म नहीं करना चाहता । पर फिर भी शेर, शेर होता है, जंगल का राजा । वह दहाड़ कर ब्राह्मण को कहता है, "हंस उड़ सरवर गए और अब काग भये कोतवाल, रे तो विप्रा थारे घरे जाओ, मैं किनाइनी जजमान..!"

अर्थात, हंस जो अच्छी सोच वाले थे, अच्छी मनोवृत्ति वाले थे, वह उड़कर सरोवर चले गए, अब कौवा कोतवाल पहरेदार है, जो मुझे तुम्हें मारकर खा जाने के लिए उकसा रहा है । मेरी बुध्दि फिर जाए, उससे पहले ही हे ब्राह्मण, तुम यहां से चले जाओ, शेर किसी का जजमान नहीं होता, वह तो हंस था, जिसने मुझ शेर से भी पुण्य कर्म करवा दिया ।"

दूसरा ब्राह्मण सारी बात समझ जाता है और ड़र के मारे तुरंत प्राण बचाकर अपने घर की ओर भाग जाता है ।

कहने का तात्पर्य यह है कि हंस और कौवा कोई और नहीं, हमारे यानि आदमी के ही दो चरित्र हैं ।

हममें से जब कोई किसी का दु:ख देख दु:खी होता है, और उसका भला सोचता है, तब वह हंस होता है । और जो किसी को दु:खी देखना चाहता है, किसी का सुख जिसे सहन नहीं होता, वह कौवा है ।

जो आपस में मिल-जुलकर, भाईचारे से रहना चाहते हैं, वे हंस प्रवृत्ति के हैं ।
जो झगड़ा करके, कलह करके एक-दूसरे को मारने, लूटने, प्रताड़ित करने की प्रवृत्ति रखते हैं, वे कौवे की प्रवृति के होते हैं ।

अपने आस-पास छुपे बैठे कौवों को पहचानो, उनसे दूर रहो और जो हंस प्रवृत्ति के हैं, उनका साथ करो, उनकी संगति करो, इसी में हम सब का कल्याण निहित है ।


धन्यवाद..!