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एक ओंकार सतनाम (गुरू नानक) प्रवचन--10 - Printable Version

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एक ओंकार सतनाम (गुरू नानक) प्रवचन--10 - Osho Prem - 03-03-2019

सूफी फकीर हुआ, बायजीद। 
वह अपनी प्रार्थना में परमात्मा से कहता था, 
मेरी प्रार्थनाओं का खयाल मत करना। 
तू उन्हें पूरी मत करना। 
क्योंकि मेरे पास इतनी बुद्धिमत्ता कहां है 
कि मैं वही मांग लूं जो शुभ है!

आदमी बिलकुल बुद्धिहीन है। 
वह जो भी मांगता है, 
उसी के जाल में भटकता है। 
अगर पूरा हो जाता है, 
तो मुश्किल खड़ी हो जाती है। 

पूरा नहीं होता, 
तो मुश्किल खड़ी होती है। 
तुम सोच कर देखो, अतीत में लौटो। 

अपनी जिंदगी का एक दफा लेखा-जोखा करो। 
तुमने जो मांगा, उसमें से कुछ पूरा हुआ है, 
उससे तुम्हें सुख मिला? तुमने जो मांगा, 
उसमें से कुछ पूरा नहीं हुआ है, उससे तुम्हें सुख मिला? 

तुम दोनों हालत में दुख पा रहे हो। 
जो मांगा है, उससे उलझ गए। 
जो मिला है, उससे उलझ गए। 
जो नहीं मिला है, उससे उलझे हुए हो।

बुद्धिमानी क्या है? 
बुद्धिमत्ता का लक्षण क्या है? 
बुद्धिमत्ता का लक्षण है, 

उस सूत्र को मांग लेना जिसे मांग 
लेने से फिर दुख नहीं होता। 
इसलिए धार्मिक व्यक्ति के 
अतिरिक्त कोई बुद्धिमान नहीं है। 

क्योंकि सिर्फ परमात्मा को 
मांगने वाला ही पछताता नहीं। 
बाकी तुम जो भी मांगोगे, पछताओगे। 

इसे तुम गांठ बांध कर रख लो। 
तुम जो भी मांगोगे, पछताओगे। 
सिर्फ परमात्मा को मांगने वाला कभी नहीं पछताता। 

उससे कम में काम भी नहीं चलेगा। 
वही जीवन का गंतव्य है।
लेकिन क्या तुम उस 
परमात्मा को शास्त्रों में पा सकोगे?

नानक कहते हैं, वहां तुम उसे न पा सकोगे। 
वहां तुम्हें शब्द मिल जाएंगे, सिद्धांत मिल जाएंगे, 
सत्य नहीं मिलेगा। सत्य कहां मिलेगा? 
सत्य, नानक कहते हैं--

वह सबसे महान है। 
और वह अपने को आप ही जानता है।'
तुम उसे दूर-दूर रह कर न जान सकोगे। 
तुम जब उसमें डूब जाओगे, 
तभी उसे जान सकोगे। 

सत्य का वही एक मार्ग है। 
परमात्मा के साथ एक हुए बिना 
कोई सत्य को नहीं जान सकता।

हम पदार्थ के संबंध में जानकारी ले सकते हैं। 
विज्ञान इसी तरह की जानकारी है। 

दूर खड़े हो कर, बाहर खड़े हो 
कर वैज्ञानिक परीक्षण करते हैं, 
पदार्थ के संबंध में ज्ञान हो जाता है। 
लेकिन परमात्मा के संबंध में कोई 
ज्ञान बाहर से नहीं हो सकता। 

वहां तो भीतर ही जाना होगा। 
वहां तो इतने भीतर जाना होगा जहां 
कि तुम्हारी और उसकी सीमा खो जाती है। 

तुम उसके हृदय की धड़कन बन जाते हो, 
वह तुम्हारे हृदय की धड़कन बन जाता है। 
जहां इतनी एकता सध जाती है, वहीं ज्ञान है।

शास्त्रों से यह कैसे होगा? 
शब्दों से यह कैसे होगा? 
यह तो प्रेम से ही हो सकता है।

इसलिए नानक कहते हैं, बस, प्रेम कुंजी है। 
और अगर उसके नाम का प्रेम जग जाए, 
अगर उसकी धुन तुम्हारे भीतर बजने लगे, 
और तुम उसके प्रेम में पागल हो जाओ, 
तो तुम जान सकोगे।

एक ओंकार सतनाम (गुरू नानक) प्रवचन--10